प्रसवपीडाहरव्रत
( संस्कारप्रकाश ) - पलाशपत्रके दोनेमें एक पल ( लगभग चार तोला ) तिलका तैल भरकर दूर्वाके इक्कीस पत्रोंद्वारा प्रदक्षिणा - क्रमसे उसका आलोडन करे ( दूर्वाङ्कुरोंको तैलमें घुमावे ) । उस समय प्रत्येक बारके आलोडनमें
' हिमवत्युत्तरे पार्श्वे शबरी नाम यक्षिणी । तस्या नूपुरशब्देन विशल्या स्यात्तु गर्भिणी ॥'
इस मन्त्नका उच्चारण करता रहे । इक्कीस बार जप हो जानेपर उसमेंसे थोड़ा - सा तैल गार्भिणीको पिलावे और स्वयं उपवास करके उक्त मन्त्रका जप करे । इससे सुखपूर्वक प्रसव होता है और गर्भावस्थाकी पीड़ा मिट जाती है ।