विभिन्न कुष्ठोपहरव्रत
( महाभारत ) - जलजन्तु ( मच्छी, कछुए, मकर, मगरमच्छ और मुर्गा ) आदिके प्राण लेने अथवा वस्त्रादिको लूटने आदिसे ' श्वेत - कुष्ठ ' होता है । इसके लिये सांतपनव्रत करे । ...... न्याय - पूर्वक अपराधका निर्णय किये बिना ही निर्दोषपर दोषारोपण करए उसे अनुचित दण्ड देनेसे मुखमण्डलपर ' कृष्ण - कुष्ठ ' होता है । उसके लिये कृच्छ्रतिकृच्छ्र चान्द्रायणव्रत करे । क्षुद्र ( छोटे ) जीवोंका वध करनेसे ' मुखविवर्णकर - कुष्ठ ' ( मुखको मधुमक्खियोंके छत्ते - जैसा कुरुप बनानेवाला ) होता है । उसके लिये अतिकृच्छ्रचान्द्रायनव्रत करके रजतवृषभ ( चाँदीके बैल नन्दिकेश्वर ) का दान करना चाहिये । ब्रह्महत्या करनेसे ' पाण्डु - कुष्ठ ' होता है । उसके लिये यथोचित स्त्रान, दान, जप, तप ( उपवास ), ईश्वरस्मरण और विष्णुपूजन आदि सत्कर्म करनेके अनन्तर शालग्रामजीकी मूर्तिको काष्ठासनादिमें सुस्थिर करके उनको जलपूर्ण एक सहस्त्र कलशोंसे स्त्रान करावे । साथ ही पुरुषसूक्तके पाठ तथा प्रत्येक कलशके साथ विष्णुसहस्त्रनामके एक - एक नामका ' ॐ विष्णवे नमः ' इत्यादिरुपसे कारण करता रहे और अभिषेक समाप्त होनेपर पचास ब्राह्मणोंको उत्तम पदार्थोका भोजन करवाकर स्वयं एक समय भोजन करे । पूर्वजन्ममें गौ - ब्राह्मणोंका घात करनेके महापापसे मनुष्यके शरीरमें ' गालितकुष्ठ ' होता है, जिसमेंसे रक्त, जल और चेप सदैव झरते रहते हैं । हाथ, पाँव, अङ्गली, अगूँठे, भौंह, पीठ और कटि आदि सम्पूर्ण अङ्गोमें घात, क्षत या फूटे हुए फोड़े - जैसे चिह्न हो जाते हैं और उनमेंसे दुर्गन्ध निकलती रहती है । यह कोढ़ आमरण रहता है । बल्कि संसर्गदोषवश उसकी मृत्युके पश्चात् बेटे - पोते - तकके शरीरमें भी उसका उदय होता है । इसकी पीड़ासे मुक्त होने या शान्ति - लाभ करनेके लिये यथासामर्थ्य सोना या चाँदीका कालपुरुष बनवावे । उसके चक्राकार गोलवृत्तमें बहुत - सी किरणें भी हों और देखनेमें ग्रह, तारा या सूर्य - जैसा मालूम हो । तदनन्तर उसको वस्त्रसे ढकी हुई चौकीपर विराजमानकर गन्ध - पुष्पादिसे पूजन करे और वेदज्ञ, विधिज्ञ एवं बहुज्ञ ब्राह्मणको भोजन कराकर उसका यथाविधि दान करे । इसी तरह अधिक मात्रामें चाँदीकी अनेक बार चोरी करनेमें ' चित्रकुष्ठ ' होता है । उसमें मनुष्यके शरीरमें सर्वत्र ही चित्र - विचित्र सफेद धब्बे हो जाते हैं, जिनसे उसका स्वरुप बिगड़ जाता है । उक्त पापका परिहार करनेके लिये कुरुक्षेत्रमें जाकर तीन प्राजापत्यव्रत करे और व्रतके दिनोंमें अपनी शक्तिके अनुसार तीन पल ( लगभग बारह तोला ) सुवर्णमेंसें प्रतिदिन थोड़ा - थोड़ा असमर्थ मनुष्योंको दान दे ।