यक्ष्मान्तक सानुष्ठान - व्रत
( मुक्तकसंग्रह ) - राजयक्ष्मावाले रोगीको चाहिये कि वह सत्पात्र ब्राह्मणको बुलवाकर उससे त्र्यम्बकमन्त्नका पुरश्चरण करनेकी प्रार्थना करे और उसके स्वीकार करनेपर दृढ़ व्रतके साथ यह आज्ञा करे कि इससे मैं अवश्य आरोग्य लाभ करुँगा । तत्पश्चात् सदनुष्ठानी ब्राह्मण शिवजीके मन्दिरमें बैठे और पार्थिव मूर्तिका निर्माण करे, फिर उसका पञ्चोपचार पुजन करके त्र्यम्बकमन्त्नका एक हजार जप करे । अथवा
' ॐ जूं सः अमुकं पालय पालय सः जूं ॐ '
इस मन्त्नका १० हजार जप करे । जप करते समय शिवमूर्तिके अपलक दर्शन करता रहे और यह प्रार्थना करे कि ' हे मृत्युञ्जय ! जिसके निमित्त मैं जप करता हूँ, उसका राजयक्ष्मासे कोई अनिष्ट न हो ।' तत्पश्चात् पूजनके गन्ध - पुष्प और बिल्वपत्र लेकर रोगीके नेत्र, ललाट और हदयमें लगाकर सिरहाने रख दे । इस प्रकार प्रतिदिन नवीन पत्र सिरहाने रखता रहे और पुराने निकालकर नदी आदिके प्रवाही जलमें डलवाता रहे । इस प्रकार करनेसे शीघ्र आरोग्य होता है ।