अतिसारहरव्रत
( अनुष्ठात - प्रकाश ) - यह रोग कर्मविपारके अनुसार जलाशयादि नष्ट करनेके पापसे या आयुवेंदके १ अनुसार प्रमाणासे अधिक या गरिष्ठ अथवा अत्यन्त पतला या अत्यन्त स्थूल भोजन करने आदिसे होता है । अतिसारीको चाहिये कि वह शौचादिसे निवृत्त होकर ' सौऽग्निरस्मी०' मन्त्रका यथाशक्ति जप करके उसी मन्त्रसे दशांश हवन करे और एकभुक्त व्रत करके शक्तिके अनुसार सुवर्णका दान दे ।
गुर्वतिस्त्रिग्धतीक्ष्णोष्णद्रवस्थूलतिशीतलैः ।
विरुद्धाध्यशनाजीर्णैर्विषमैश्चातिभोजनैः ॥ ( माधव )