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मूत्रकृच्छ्रहरव्रत

रोग हनन व्रत - मूत्रकृच्छ्रहरव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


मूत्रकृच्छ्रहरव्रत

( सूर्यारुण २१५ ) - जो मनुष्य ब्राह्मण कुलमें जन्म लेकर गौड़ी, माध्वी और यवसम्भूत सुराका पान करते हैं, उनके मूत्रकृच्छ्र होता है अथवा तीक्ष्ण भोजन, रुक्ष भोजन, सुरापान, घोड़ेकी सवारी, चक्रवाकादिका मांस और भोजन - पर - भोजन करने आदिसे मूत्रकृच्छ्र होता है । इसकी निवृत्तिके निमित्त सुवर्णका अष्टदल कमल बनाकर उसके मध्यमें महाप्रभु ब्रह्माजीका आवाहनादि षोडशोपचारोंद्वारा पूजन करके सात्त्विक पदार्थोंका एक समय भोजन करे और इस प्रकार प्रत्येक शुक्लपक्षकी द्वितीयाको करता रहे ।

व्यायामतीक्ष्णौषधरुक्षमद्यप्रसंगनित्यद्रुत्पृष्ठमानात् ।

आनूपमांसाद्यशनादजीर्णात् स्युर्मत्रकृच्छ्र .........॥ ( माधव )

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Last Updated : January 16, 2012

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