प्रमेहरोगोपशमनव्रत
( अनु० प्रकाश ) - यह रोग अनेक प्रकारका होता है । धर्मशास्त्रोंके अनुसार किसी भी जन्ममें माता, सास, गुरुपत्नी, रानी तथा मित्र - मातामें गमन करनेसे ' मधुमेह ', भ्रातृभार्या ( भौजाई ) में गम करनेसे ' जलमेह ', भगिनीमें गमन करनेसे ' इक्षु ' ( रस ) मेह, अमा, पूर्णिमा या ग्रहणमें स्त्री - प्रसंग करने तथा कन्यामें गमन करनेसे ' बालमेह ', चाण्डाली या मेहतरी आदिमें गमन करनेसे ' व्याधिकर सर्वप्रमेह ' और तिर्यग्योनि - ( पशु आदि - ) में गमन करनेसे ' शूलप्रयुक्तप्रमेह ' होता है । आयुवेंदके अनुसार सुखकी उपस्थिति, सुखकी निद्रा, सुखप्रद ( स्त्री - प्रसङ्गकारी ) स्वप्र और दूध - दही या नवीन अन्न - जल खाने - पीने आदिसे प्रमेह होता है । इसकी निवृत्तिके लिये यथायोग्य - क्षुधा और तृषा ( भूखप्यास ) दोनों त्यागकर निराहार तीन उपवास, तीन यवमध्य, तीन चान्द्रायण तथा तीन कृच्छ्रचान्द्रायण, पुरुषसूक्त और सहस्त्रनामके पाठ करे और अधिक पाप ( या पाप और रोग दोनों ) हों तो प्रतिदिन ' या ते रुद्र० ' सूक्तसे घीकी एक हजार आहुति, सुवर्ण - धेनुका दान और चालीस ब्राह्मणोंको भोजन करावे । इससे सब प्रमेह शान्त होते हैं ।
आस्यासुखं स्वप्नसुखं दधीनि ग्राम्यौदकानूपरसाः पयांसि ।
नवान्नपानं गुडवैकृतं च प्रमेहहेतु .........॥ ( माधव )