मन माधवको नेकु निहारहि ।
सुनु सथ, सदा रंककेधन ज्यों, छिन-छिन प्रभुहिं सँभारहि ॥
सोभा-सील ग्यान-गुन-मंदिर, सुंदर, परम उदारहि ।
रंजन संत,अखिल अघ गंजन, भंजन बिषय बिकारहि ॥
जो बिनु जोग, जग्य, ब्रत, संयम गयो चहै भव पारहि ।
तौ जनि तुलसीदास निसि बासर हरि-पद कमल बिसारहि ॥