बहुत दिन बीते सुधि कछु न लही ।
गए जो पथिक गोरे साँवरे सलोने,
सखि, संग नारि सुकुमारि रही ॥१॥
जानि पहिचानि बिनु आप तें आपनेहु तें,
प्रानहु तें प्यारे प्रियतम उपही ।
सुधाके सनेहहूके सार लै सँवारे बिधि,
जैसे भावते हैं भाँति जाति न कही ॥२॥
बहुरि बिलोकिबे कबहुँक, कहत,
तनु पुलक, नयन जलधार बही ।
तुलसी प्रभु सुमिरि ग्रामजुबती सिथिल,
बिनु प्रयास परीं प्रेम सही ॥३॥