बैठी सगुन मनावति माता ।
कब ऐहैं मेरे बाल कुसल घर कहहु काग फुर बाता ॥१॥
दूध भातकी दोनी दैहौं सोने चौंच मढ़ैहौ ।
जब सिय सहित बिलोकि नयन भरि राम-लखन उर लैहौं ॥२॥
अवधि समीप जानि जननी जिय अति आतुर अकुलानी ।
गनक बोलाइ पायँ परि पूछति प्रेम-मगन मृदु बानी ॥३॥
तेहि अवसर कोउ भरत निकट तें समाचार लै आयो ।
प्रभु आगमन सुनत तुलसी मनों मीन मरत जल पायो ॥४॥