रघुपति राजीवनयन,सोभातनु कोटिमयन ॥
करुनारस-अयन चयन-रूप भूप, माई ।
देखो सखि अतुल छबि, संत, कंज-कानन-रबि,
गावत कल कीरति कबि-कोबिद समुदाई ॥
मज्जन करि सरजु-तीर ठाढ़े रघुबंस-बीर,
सेवत पद-कमल धीर निरमल चितलाई ।
ब्रह्ममंडली-मुनींद्रबृंद-मध्य इंदु-बदन-
राजत सुखसदन लोक-लोचन-सुखदाई ॥
बिथुरित सिररुह बरूथ कुंचित बिच सुमन-जूथ,
मनि जुत सिसु फनि-अनीक ससि-समीप आई ।
जनु सबीत दै अँकोर राखे जुग रुचिर मोर,
कुंडल-छबि निरखि चोर सकुचत अधिकाई ॥
ललित भ्रकुति तिलक भाल चिबुक अधर द्विजरसाल,
हास चारुतत, कपोल नासिका सुहाई ।
मधुकर जुग पंकज बिच सुक बिलोकि नीरज पैलरत
मधुप-अवलि मानो बीच कियो जाई ॥
सुंदर पट पीत बिसद, भ्राजत बनमाल उरसि,
तुलसिका प्रसून रचित बिबिध बिधि बनाई ।
तरु-तमाल अधबिच जनु त्रिबिध कीर पाँति,
रुचिर हेमजाल अन्तर परि ताते न उड़ाई ॥
संकर ह्रदि-पुंडरीक निसि बस हरि चंचरीक,
निर्ब्यलीक मानस-गृह संतत रहे छाई ॥
अतिसय आनंदमूल तुलसीदास सानुकूल,
हरन सकल सूल, अवध-मंडन रघुराई ॥