राघौ गीध गोद करि लीन्हौ ।
नयन सरोज सनेह सलिल सुचि मनहुँ अरघ जल दीन्हौं ॥
सुनहु लखन ! खगपतिहि मिले बन मैं पितु-मरन न जान्यौ ।
सहि न सक्यो सो कठिन बिधाता बड़ो पछु आजुहि भान्यौ ॥
बहुबिधि राम कह्यौ तनु राखन परम धीर नहि डोल्यौ ।
रोकि प्रेम, अवलोकि बदन-बिधु बचन मनोहर बोल्यौं ॥
तुलसी प्रभु झूठे जीवन लगि समय न धोखो लैहौं ।
जाको नाम मरत मुनि दुर्लभ तुमहि कहाँ पुनि पैहौं ॥