मोकहँ झूठेहु दोष लगावहिं ।
मैया ! इन्हहिं बानि परगृहकी, नाना जुगुति बनावहिं ॥१॥
इन्हके लिये खेलिबो छाड़यों तऊ न उबरन पावहिं ।
भाजन फोरि, बोरि कर गोरस देन उरहनों आवहिं ॥२॥
कबहुँक बाल रोवाइ पानि गहि मिसकरि उठि-उठि धावहिं ।
करहिं आपु सिर धरहिं आनके बचन बिरंचि हरावहिं ॥३॥
मेरी टेव बूझि हलधरको संतत संग खेलावहिं ।
जे अन्याउ करहिं काहूको ते सिसु मोहि न भावहिं ॥४॥
सुनि-सुनि बचन चातुरी ग्वालिनि हँसि-हँसि बदन दुरावहिं ।
बालगोपाल-केलि-कल-कीरति तुलसीदास मुनि गावहिं ॥५॥