गोपाल गोकुल-बल्लभी-प्रिय, गोप गोसुत बल्लभं ।
चरणारविन्दमहं भजे भजनीय सुर-मुनि-दुर्लभं ॥
घनश्याम काम अनेक छबि लोकाभिराम मनोहरं ।
किञ्लक-बसन किसोर मूरत भूरि गुन करुणाकरं ॥
सिर केकिपच्छ, बिलोल कुण्डल अरुण बनरुह लोचनं ।
गुञ्जावतंस विचित्र सब अंग धातु भव भय-मोचनं ॥
कच कुटिल सुंदर तिलक भ्रू राका मयंक समाननं ।
अपहरण-तुलसीदास त्रास, बिहार वृंदा-काननं ॥