जिसके एक पापग्रह लग्नमें हो और लग्नेश न देखता होय अथवा सूर्यकी दृष्टि न होवै तो वह बालक अन्यसे उत्पन्न कहना चाहिये । तिथिके अन्तमें, दिनके अन्तमें, लग्नके अंतमें अथवा चरनवांशकमें पैदाहुआ बालक दूसरेसे उत्पन्न जानना । जन्मलग्नमो चन्द्रमा न देखता होय अथवा बुध और शुक्रके बीचमें चन्द्रमा होय अथवा मंगल सातवें स्थित होय और चन्द्रमा लग्नको न देखता होय अथवा लग्नमें शनैश्चर स्थित होय, चन्द्रम लग्नको न देखता होय तो इस प्रकार ये चार योग हुए । इनमें उत्पन्न हुए बालकका पिताके परोक्षमें जन्म कहना चाहिये । चन्द्रमा बृहस्पतिके स्थानमें स्थित होय और शुक्र अपनी राशिके विना अन्यत्र स्थित हो अथवा बृहस्पति द्रेष्काण वा नवांशमें चन्द्रमा स्थित होय तो वह मनुष्य दूसरेसे उत्पन्न न कहना चाहिये । लग्नको चन्द्रमा अथवा बृहस्पति लग्नप चन्द्रमाको न देखता होय और न चन्द्रमायुक्त सूर्यको देखता होय वा शनैश्चर सूर्यकरके चन्द्रमायुक्त होय तो दूसरेसे उत्पन्न बालक कहना चाहिये ॥९५-९९॥
लग्नको न बृहस्पति और न शुक्र देखता होय एकयोग, मंगल सूर्य देखते होंय लग्न वा चन्द्रमाको द्वितीययोग, चन्द्रमा पापग्रहोंसे युक्त सूर्यसहित होय तौ तृतीययोग इन योगोंमें उत्पन्न हुआ बालक दूसरेका कहना चाहिये । जिसके चन्द्रमा जन्मलग्नमें आठवें वा दूसरे बारहवें अथवा ग्यारहवें स्थित हो तौ परोक्षमें उस बालकका जन्म कहना चाहिये । जिसके चन्द्रमा लग्नको नहीं देखता होय और मंगल शनि लग्नमें होवैं अथवा शुक्र बृहस्पति केन्द्रांशकरके रहित हों तो उस बालकका पिताके परीक्षमें जन्म कहना चाहिये । जिसके सूर्य चन्द्रमायुक्त सिंहलग्नमें स्थित हों और मंगल शनैश्चर देखते हों तौ नेत्रहीन मनुष्य होता है. यदि शुभग्रह देखते होंयो तौ छोटे नेत्रोंवाला होता है और चन्द्रमा वा मंगल वा सूर्य बारहवें स्थित हो तो भी शुभ न कहना. यदि शुभग्रह देखते होयँ तो शुभ कहना चाहिये ॥२००-२०३॥