जिस नक्षत्रमें केतु होय उस सहित पांच नक्षत्र मस्तकमें स्थापित करै. मुखमें दो २, कर्णमें पांच ५, हदयमें दो २, हाथमें चार ४, अंध्रिमें पांच ५, वस्तिमें चार नक्षत्र धरै । इस प्रकार बुद्धिमान् जन केतुचक्र कहते हैं । मुखमें जन्मनक्षत्र पडै तो भय होवै, मस्तकमें जय, कर्णमें भय, दोनों हाथोंमें सौख्य, पादमें सुख, हदयमें शोक और गुदामें जन्मनक्षत्र पडै तो भय और दुःखविकारका हेतु जानना ॥१॥२॥
इति पुरुषाकारनवग्रहचक्र ॥