सूर्यचन्द्रमाका जो अयनबल है उसीका चेष्टाबल जानना । भौमादिग्रहोंके चेष्टाबल साधनेके निमित्त तात्कालिक मध्यम ग्रह और तात्कालिक स्पष्टग्रह स्थापित करके अपने २ मध्यम और स्पष्टका अंतर करै अर्थात् जिसमें जो घटै उसको घटायदेय । जो शेष रहै उसका अर्द्ध करके अपने २ शीघ्रोच्चमें युक्त करदेय तौ चेष्टा केन्द्र होता है । किसी आचार्यका मत है कि, मध्यम और स्पष्टग्रहका योगार्द्ध उसी ग्रहके शीघ्रोच्चमें कर्म करै तो भौमादि ग्रहोंका चेष्टा केन्द्र होता है. यदि चेष्टा केन्द्र छः से अधिक होय तौ षड्भाल्प करना अर्थात् १२ राशिमें घटाय देना तौ चेष्टाकेन्द्र जानना । फिर राश्यादिका लिप्तापिंड बनाकर दशहजार आठसौका भाग देना तौ लब्धिरुपादि भौमादिका लिप्तापिंड बनाकर दशहजार आठसौका भाग देना तौ लब्धि रुपादि भौमादि ग्रहोंका चेष्टाबल होगा अथवा षड्भाल्पकेन्द्रका अंशादिकरके तीन ३ से भागदेना तौ सुगमरीतिसे चेष्टाबल होता है ॥१॥
चेष्टाबलसारिणीप्रवेश ।
चेष्टाकेन्द्र षड्भाल्पकरके सारिणीमें छः ६ राशिकोष्ठक हैं । उसमेंसे चेष्टाकेन्द्रका जो इष्टराश्यंक होय उसके नीचेका राशिफल लेना । अनंतर राशिकोष्ठकके नीचे अंशकोष्ठक और कलाकोष्ठक लिखा है, उसमेंसे षड्भाल्पकेन्द्रके जो इष्ट अंश कला आवें तत्परिमितकोष्ठकके नीचेका अंशके कलादि और कलाका विकलादि फल एकत्र करके पूर्वमें जो लिया राशिफल उरामें युक्त करना तो ग्रहोंका चेष्टाबल होता है ॥