जिसके जन्मसमय संपूर्ण पापग्रह तीसरे स्थानमें स्थित हों वह भाइयोंकरके रहेत होता है और यदि शुभग्रह युक्त हों अर्थात् स्थित हों तो भ्रातृयुक्त कीर्तिमान् और प्रिय धनवाला होता है जिसके जन्मलग्नसे तीसरे भावमें केतुयुक्त चन्द्रमा स्थित होय वह बालक लक्ष्मीवान् और भाइयोंसे हीन निःसंदेह होता है । जिसके सूर्य तीसरे बैठा होय तो उसके बडे भाईका नाश करता है और मंगल शनैश्चर हों तो छोटे भाईका नाश और राहु बैठा होय तो दोनोंका नाश करता है और केतु सर्वनिवाक होता है । जिसके अपने घरमें राहु स्थित हो और बुध करके युक्त बृहस्पति दूसरे भावमें स्थित हो तौ उसके तीन भाई होते हैं ॥१-४॥
जिसके लग्नमें चन्द्रमा, दूसरे शुक्र, बारहवें बुध सूर्य और राहु पंचममें हो तो वह बालक भाइयोंका वध करनेवाला अर्थात् उसके भाई मरजाते हैं । जिसके दूसरे स्थानमें क्रूरग्रह हों मंगल, शनैश्चर युक्त हों और तीसरे भावमें राहु होय तो उसके भाई नहीं जीते हैं जिसके छठे मंगल सातवें राहु और आठवें शनैश्चर हो तो उसके भाई नहीं जीते हैं । जिसके जन्मलग्नमें बृहस्पति दुसरे शनैश्चर ओर तीसरे राहु स्थित हो तौ उसके भाई नहीं जीते हैं ॥५-८॥
जिसके सातवें मंगल शुक्र और आठवें नववें सूर्य हो वह थोडी आयुवाला होता है और उसके पिताकरके दूसरा भाई रखा जाता है उसके एक पुत्र विघ्नका नाश करनेवाला होता है । गर्भाधानकालमें जो राशि लग्नमें स्थित हो उसमें मृदुभांश अर्थात् मकरनवांश अथवा कुंभनवांशका उदय हो और लग्नसे सातवें स्थानमें शनैश्चर स्थित हो तो तीन वर्षभर गर्भस्थका जन्म कहना चाहिये । और जो गर्भाधानकालिक लग्नमें कर्कनवांशक उदय हो और लग्नसे सातवें स्थानमें चन्द्रमा स्थित हो तौ बारह वर्ष गर्भस्थका जन्म कहना चाहिये । जिसके उच्चराशिमें पुरुषग्रह तीसरे भावमें स्थित हों तो उसके छः भाई होते हैं अन्यथा अर्थात् स्त्रीग्रह वा नपुंसकग्रहसे भगिनी कहना चाहिये ॥९-१२॥