दीप्त १, स्वस्थ २, मुदित ३, शांत ४, शक्त ५, पीडित ६, दीन ७, विकल ८ और खल ९ ये अवस्था नवप्रकारसे ग्रहोंकी कही गई हैं । जो ग्रह अपने उच्चराशिमें बैठा है उसकी अवस्था दीप्ता है और जो ग्रह अपने घरमें बैठा है उसकी अवस्था स्वस्था है अर्थात् सावधान है और जो मित्रके घरमें हैं वे हर्षित हैं और जो शुभग्रहके षड्वर्गमें हों उनकी शांता अवस्था जानिये और जो उदयको प्राप्त है अर्थात् अस्त नहीं है वह शक्तावस्थामें है और जो अपने नीचराशिमें है अथवा सूर्यके किरणोंमें अस्त होगया है वह दीन है अर्थात् दुःखित है और जो पापग्रहके साथ बैठा है वह खल है और जो पापग्रहोंसे पीडित है वह पीडितावस्थामें है ॥२॥
जो ग्रह दीप्तावस्थामें है उसका फल बडा श्रेष्ठ और बहुत प्रतापयुक्त, हाथियोंके समूह उसके साथ चलते हैं, धनी पुरुष और शत्रुजनोंका जीतनेवाला और विख्यात कीर्तिवाला होता है और उसके घर लक्ष्मी निरन्तर निवास करती है । जिसके जन्मकालमें ग्रह स्वस्थावस्थामें है वह पुरुष बहुत वाहनोंसे सुख पानेवाला और बडे उत्तम स्थानमें निवास करनेवाला और धन धान्ययुक्त और बहुत सेनाका स्वामी और शत्रुजनोंका विजय करनेवाला होता है । जिसके हर्षित ग्रह हर्षितावस्थामें होता है वह मनुष्य स्त्रीजनोंसे बहुत सुख भोग विलास करनेवाला, रत्नादिभूषणका धारण करनेवाला, बडा धनवान्, उत्तम कीर्ति करनेवाला, धर्ममें नियुक्त और शत्रुकरके हीन होता है । जिसके शान्तावस्थामें ग्रह बैठा है वह अधिक शांतियुक्त, राजाओंका मंत्री, स्वतंत्र, बहुत मित्र पुत्रोंसमेत सुखी प्रसन्नचित्त शास्त्रोंका पढनेवाला, निरन्तर विद्याका अभ्यास करनेवाला और परोपकारी तथा सावधान चित्तवाला होता है । जिसके शक्तावस्थामें ग्रह बैठा हो वह विशेषकर सव कार्योंके करनेमें समर्थ होता है और सुंगधमाल्यादिकोंमें अभिरुचि रखनेवाला, पवित्र आत्मा, विख्यातकीर्ति, सुजनोंमें प्रसन्न होनेवाला तथा जनोंका उपकार करनेवाला वा शत्रुजनोंका मारनेवाला होता है ॥३-७॥
जिसके विकलावस्थामें ग्रह बैठा होय वह निर्बल, मलीन, सदा शत्रुजनोंसे पीडित, निर्बुद्धि, नीचोंका संग करनेवाला, परदेशमें वसनेवाला व बहुत दुर्बल और पराये कार्यका करनेवाला होता है । जिसके दीनावस्थामें ग्रह बैठा हो वह दीन और राजासे पीडित वा शत्रुओंसे भयभीत, नीतिरहित, हीनकांति होकर अपने जनोंसे बैरका करनेवाला होता है । जिसके खलावस्थामें ग्रह बैठा हो वह खलोंसे लडाई करनेवाला, स्त्रीसे दुःखी, चिंतासे व्याकुल, द्रव्यकी इच्छा करताहुवा परदेशमें भ्रमण करनेवाला, धनहीन होकर क्रोध करतहुवा निर्बुद्धिवाला होता है । जिसके पीडितावस्थामें ग्रह बैठा हो वह सदा व्याधियोंसे पीडित होताहुआ निर्वस्त्र होकर परदेशको जाता है और अपने बंधुओंकी चिंतासे व्याकुल आत्मा होता है ॥८-११॥