पंचमस्थानमें संपूर्ण शुभग्रह संतानकारक होते हैं और क्रूरग्रह संतानके मृत्युकारक होते हैं और मंगल कुपुत्रको देता है । जिस बालकके जन्मकालमें पांचवें मंगल स्थित हो तौ वह पुत्ररहित होता है और स्त्रीके यदि पंचम मंगल हो तो विशेष करके अपुत्रिणी होती है । सूर्य पंचम हो पुत्रीरहित चंद्रमा हो तो एक पुत्र होता है । पंचम मंगल हो तौ शोकयुक्त और पुत्रहीन होता है । जिसके उच्च अथवा नीच राशिका केतु पंचमभावमें हो वह पुत्रशोक करके पीडित होता है । यदि उस केतुकी कोई ग्रह न देखता हो तो ऋतुका रेत बंद होजाता है और दो तीन चार स्त्रियोंको विवाहनेपरभी प्रसूतिरहित मनुष्य होता है ॥१-५॥
पंचमस्थानमें स्थित सूर्य मंगल बृहस्पति क्रमसे एक, तीन, पांच पुत्र देते हैं और चन्द्रमा, बुध, शुक्र, शनि क्रमसे दो, तीन पांच, सात पुत्री ( कन्या ) देते हैं । पंचमस्थानमें पापग्रह हों तो जो बालक उत्पन्न होजाता है उसको नष्ट करदेते हैं और सप्तम स्थानमें दो पापग्रह हों तो स्त्रीको विनाश करदेते हैं ऐसा वादरायणजीने कहा है । पंचमस्थानमें सूर्य होनेसे एक पुत्र, चन्द्रमासे दो कन्या, मंगलसे तीन पुत्र, बुधसे स्थानमें हो तो गर्भपात करता है और राहु पंचम हो तो गर्भधारण ही नहीं होता है । सुतस्थानमें दो अथवा तीन पापग्रह स्थित हों अथवा सुतभावको देखते हों तो स्त्री पुरुष दोनों वंध्या होते हैं ॥६-१०॥
शुक्रको ऋतु और मंगलको रेत कहा है । जिस वर्षमें भौम देखै उस वर्षमें गर्भकी स्थिति जानना । ऋतुरेतके संगम करके विषमगति होनेपर करसंपुट ग्रहणकरके निश्चय वंध्या होती है । लग्नका स्वामी पुरुषराशिमें हो अथवा पंचमेशको देखता हो और चन्द्रमा पापग्रहयुक्त केन्द्र ( १।४।७।१० ) में स्थित हों तौ संततिको बाधा होती है । जिसके शुभराशिका स्वामी लग्नसे पांचवें सातवें स्थित होवै अथवा चंद्रमासे पांचवें सातवें होवै तो वह संपदा और हितकरके युक्त होता है और जिसके पापग्रहसे युक्त सूर्य जन्मलग्नमें हो और शनैश्चर मीनराशिमें हो तो उसकी स्त्री मरजाती है और यदि पंचमस्थानमें स्थित होवै तो पुत्र मरजाते हैं तथा वनमें पुत्रकी उत्पत्ति होती है । जिसके लग्नका स्वामी लग्नमें या दूसरे या तीसरे भावमें स्थित होय तो उसके प्रथम पुत्र उत्पन्न होता है । क्रमसे कन्यापुत्र इत्यादि बारह भावमें रहते जानना ॥११-१५॥
दूसरे भावमें क्रूर राशि हो और क्रूरग्रह उसमें स्थित हो और अपने क्षेत्रको न देखता होय तो वह थोडे पुत्रोंवाला होता है । जिसके तीसरे भावका स्वामी तीसरे लग्नमें अथवा दूसरे स्थानमें स्थित हो उसके बालक नहीं होता है. यदि उत्पन्न हो तो मरजाता है । जितनी संख्याका नवांश पंचमभावमें हो उतनेही संख्याकरके संतान उत्पन्न होते हैं । जिसके पंचमभावमें मीन अथवा धनुराशि होय उसको प्रसवसौख्यका फल नहीं दिखाई देता है अर्थात् उसके संतान उत्पत्ति नहीं होती है. यदि पंचमभावमें बृहस्पति हो तौ पुत्र उत्पन्न होकर मरजावे और जो बृहस्पति देखता होय तौ शुभ जानना । ग्यारहवें वा पांचवें शुक्र चन्द्रमा अथवा पांचवें मंगल क्रमसे होवें और शुक्र चन्द्रमा जिस वर्षमें पंचम भावको देखते होयँ उस वर्षमें सन्तान होती है । जिसके ग्यारहवें राहु पांचवें केतु हो तो उसके सन्तान नहीं होती है ॥१६-२०॥