अथायुरानयन
सूर्यादिग्रहोंके परमोच्चके ध्रुवांकको कहते हैं । यथा - सूर्यके उन्नीस १९ वर्ष, चन्द्रमाके पचीस २५ वर्ष, मंगलके पन्द्रह १५ वर्ष, बुधके बारह १२ वर्ष, बृहस्पतिके पंद्रह १५ वर्ष, शुक्रके इक्कीस २१ वर्ष और शनैश्चरके बीस २० वर्ष, यह ध्रुवांक सूर्यादिकोंकें परमोच्च जानना । जिस ग्रहका आयुर्दाय निकालना हो उस ग्रहके राश्यादिसें उसके उच्चराशिको घटादे. कदाचित् उच्चराशि न घटै तौ ग्रह राश्यादिमें बारह जोडकर उसमें उच्चराशिमें घटावे. घटाहुआ शेषांक छः राशिसे कम हो तो उसको बारह राशिमें घटावे और छः राशिसे अधिक हो तो वही शेषांक राश्यादि रहने देवे । फिर शेष राश्यादिकी लिप्तीकरके अपने वर्षोंसे गुणा करदे । फिर इक्कीस हजार छः सौ २१६०० का भाग दे । लब्धि वर्षमासादि आवे, वह पिंडायु होता है । संस्कार - जो ग्रह अपने शत्रुके घरमें स्थित हो तो पूर्वोक्त आई हुई आयुर्दायका तीसरा हिस्सा उस आयुर्दायमें हीन करदे, नीचमें हो तो आधा करदे, अस्तको प्राप्त होय तौ तीसरा हिस्सा निकाल डाले और वर्गोत्तम अथवा अपने घरमें हो तौ पूर्वोक्त आयुको दूना करदे और उच्चमें हो अथवा वर्गोंच्चमें हो तौ आयुर्दायको तिगुना करदे तौ स्पष्ट पिंडायु होती है ॥१-३॥
इति पिंडायुर्विधि ॥
उदाहरण - जैसे मंगल ४।१।२३।२७ इसका आयुर्दाय निकालन है तौ मंगलमें मंगलकी उच्चराशि ९।२८।०।०। नहीं घटी औ १२ युक्त किया तो १६।१।२३।२७ हुआ । इसमें उच्चको घटाया, तब शेष बचे ६।३।२३।२७ यह छः से अधिक है, इसलिये इसकी लिप्ता किया अर्थात् कला करलिया । तब ११००३।२७ हुआ; इसको उच्चवर्ष १५ से गुणा, तब १६५०५१।४५ हुआ । इसमें २१६०० का भाग दिया । तब लब्धि वर्ष ७ मास ७ दिन २० घटी ५४ मंगलका पिंडायु जानना, इसी प्रकार सब ग्रहोंका बनाना ॥
जो मनुष्य धर्मकर्ममें रत, जितेन्द्रिय, पथ्य भोजन करनेवाले, देवता ब्राह्मणके भक्त और संसारमें कुलशीललीलाकरके युक्त हैं उनके अर्थ यह आयुर्दाय कहा है । जो मनुष्य पापमें रत, चोर, देवता ब्राह्मणके निंदक और परस्त्रीमें रत हैं उनकी मृत्यु बेसमय होती है अर्थात् यह आयुर्दाह उनके अर्थ ठीक नहीं होता है ॥१॥२॥
अब पिंडायु, नैसर्गिकायु, अंशायु, इनमेंसे कौन लेना चाहिये ? इस आशंफासे कहते हैं कि, लग्न बली होय तौ अंशायु, सूर्य बली होय तौ पिंडायु और चन्द्र बली होय तौ निसर्गायु लेना चाहिये ॥१॥