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अध्याय ४ - रेखाबिन्दुफल

मानसागरी - अध्याय ४ - रेखाबिन्दुफल

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


सूर्यरेखाबिन्दुफल

सूर्यकी रेखा विद्यमान हों तो शत्रुओंका पराजय, साहसासिद्धि और भावसे उत्पन्न फल होता है ॥१॥

सूर्यका बिन्दु अशुभफलका दायक, अधिक व्यसन करनेवाला, रोग शोक देनेवाला, विना कारण उद्वेगदायक होता है ॥२॥

चन्द्ररेखाबिन्दुफल

चन्द्रमाकी रेखा वस्त्र, आभरण और भूषणोंको देती है, राजसम्मान, कर्मका उदय और वस्त्रोंका लाभ कराती है ॥३॥

चन्द्रमाके बिन्दुसे कष्टफल, शत्रुओंकरके कलह, दुष्टस्वप्न देखना और नित्यप्रति धनका नाश होता है ॥४॥

भौमरेखाबिन्दुफल

भौमरेखा सदा अर्थकी प्राप्ति, आरोग्यता, आयुर्दाय और शरीरकांतिकी वृद्धि देती है ॥५॥

भौमबिन्दुसे उदराग्निकी पीडा, शिरःपीडा और रक्तपित्तविकारसे उत्पन्न होता है ॥६॥

बुधरेखाबिन्दुफल

बुधकी रेखा जिसके हो वह सुख और मिष्टान्न, सदा लाभ करनेवाला, दानधर्ममें रत और ब्राह्मण देवता और अग्निका पूजनेवाला होता है ॥७॥

बुधबिन्दुसे भंग, शत्रुओंके साथ कलह, दुःस्वप्नदर्शन और सदा बेसमय भोजनका लाभ होता है ॥८॥

गुरुरेखाबिन्दुफल

गुरुरेखा सदा धनसौख्यादि तथा पुष्टि स्त्रीभोगको देती है और शत्रुओंका नाश करती है, मनोत्साह अधिक विभव वस्त्र हेम आदिकी वृद्धि होती है और बंधुवर्गादिसे सौख्यलाभ होता है ॥९॥

गुरुबिन्दुसे कष्ट, धन बुद्धिका नाश, मानसी और धनकी चिंता, मार्गमें भंग, वाहनसे गिरना, लोकजनोंसे कलह, अपनेही वचनोंकरके अपमान, शत्रुओंसे द्वेष, खर्च और सदा साहस करके कार्यहानि ऐसा फल होता है ॥१०॥

शुक्ररेखाबिन्दुफल

शुक्ररेखा मनुष्योंके अर्थ राज्यसन्मानकी वृद्धि, कन्याका लाभ, शरीरका सुंदर सुख, दीर्घआयुर्दाय, क्रीडा, बहुधा ज्ञानप्राप्ति, अर्थकी सिद्धि, लक्ष्मीका लाभ, सुख और सौख्यसंपत्तिकी वृद्धि करती है ॥११॥

शुक्रबिन्दुसे मनुष्योंको कष्ट, शत्रु, धनका नाश, स्त्रीपीडा, कलह, भूमिनाश, अधिककष्ट, बुद्धिनाश, सदा अधिक खर्च, घोडेसे गिरना, रास्तामें भंग ये सब फल होते हैं ॥१२॥

शनिरेखाबिन्दुफल

शनैश्चरकी रेखा श्रेष्ठफल, नौकरोंके हेतु धन, कार्यसिद्धि, राजासे मित्रता, साधुओंमें रति, भूमिलाभ, दुष्टजनोंसे जयप्राप्ति, स्नान, दान, पूजामें रति, मिष्टान्नभोजन, राजाकी वरदानप्राप्ति और खेतीमें धान्यकी वृद्धि यह सब फल मनुष्योंको होता है ॥१३॥

शनैश्चरकी बिन्दुसे कष्ट, राजासे भय, बंधुपीडाकी वृद्धि, धातुशस्त्र करके अथवा दुष्टजनोंकरके धनका नाश, चित्तमें उद्वेग, बहुधा भूमिका नाश, कलह, बुद्धिनाश और सदा वाहनसे हानि ये सब फल मनुष्योंको प्राप्त होते हैं ॥१४॥

इति सप्तग्रहाणां रेखाबिन्दुफलम् ॥

सर्वाष्टकवर्गकरण ।

प्रथम जन्मलग्नको आदिमें लिखकर फिर बारहों लग्न अर्थात् भावक्रमसे लिखै अर्थात् जन्मांगचक्र लिखै । फिर अष्टकवर्गकी जो आठ कुंडली पूर्वोक्त रीत्यनुसार बनीं हों उनमेंसे प्रत्येक लग्नकी पृथक् २ रेखाबिन्दु एकत्र योग करले । फिर उन योगोंको चक्रमें लग्नके अनुसार स्थापित कर दे, फिर लग्नमें जन्मका संबत्, दूसरी लग्नमें आगेका संवत्, तीसरीमें तीसरा साल इत्यादि । फिर बारह वर्षके उपरान्त लग्नादि भावोंमें संवत् आगेके लिखजावै, जिस वर्षमें रेखा अधिक हों उसमें सुख और जिस वर्षमें बिन्दु अधिक हों उसमें कष्ट जानना ॥ इति सर्वाष्टकवर्गरेखाविधिः ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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