प्राचीन आचार्योने दशमभावसे यत्नपूर्वक संपूर्ण कर्मोंका साधन उत्तम अवम कर्मोंका प्रकाश ग्रहोंकी दृष्टिसे और राशिके स्वभावसे और ग्रहोंके बलाबलसे संपूर्ण फलोंका निर्णय किया है । जन्मलग्नसे चन्द्रमा जिसके दशमभावमें बैठा होय वह पुरुष अनेक कारीगरीसे और वाग्विलाससे और अनेक उद्यम वा साहसकर्मसे धन पैदा करता है । लग्न या चन्द्रमासे दशमभावमें जो ग्रह बली होकर बैठे उसी ग्रहके अनुसार वृत्ति कहना अथवा बली षड्वर्गके स्वामीसे उसकी दशामें वैसेही वृत्ति होनी चाहिये । चन्द्रमा वा लग्नसे दशमभावमें सूर्य बैठे तो उस पुरुषको अनेक वृत्ति और अनेक यत्नसे धनका लाभ होता है और जो वही सूर्य उच्चस्यानमें बली होकर बैठे तो सदा रम्य, शरीरसुख और मनको प्रसन्नता सदैव बना रहता है । लग्न या चन्द्रमासे दशमभावमें मंगल बैठा होय तो साहसकर्म, चोरी या निषादवृत्तिसे धनलाभ होता है और विषयासक्त घरमें दूर निवास और साहसकर्मका करनेवाला होता है ॥१-५॥
लग्न और चन्द्रमासे जो दशमभावमें बुध होय तो बहुत जनोंका स्वामी, कारीगरीके कार्यगें निपुण, साहसी, लिखनेपढनसे जीविका करता है । लग्न या चन्द्रमासे दशमभावमें जो बृहस्पति होय तो अनेक प्रकारसे धनप्राप्ति करै, मंत्री विचित्र वृत्तिवाला और राजगौरवकरके युक्त होता है । लग्न या चन्द्रमासे जिसके शुक्र दशमभावमें बैठा होय तो अनेक शास्त्रोंके पढनेसे और अनेक चतुराईसे धनकी प्राप्ति करै. दानमें साधुमति उत्तम शीलस्वभाव सर्वत्र प्रतिष्ठा व मान पानेवाला और विशाल यशवाला होता है । लग्न चन्द्रमासे जिसके दशमभावमें शनि स्थित होय तो नीचवृत्तिसे जीविका करनेवाला, शरीरमें रोग, सज्जनोंसे विवाद, धनधान्यहीन, चित्तमें उद्वेग, चपल शील स्वभाव और मलीन होता है । सूर्य चन्द्रमा लग्न इन तीनोंसे जो दशमभावके स्वामी हैं, उनमेंसे जो बली है वह जिस ग्रहके नवांशमें बैठा होय तो उसीके स्वभावतुल्य वृत्ति कहना चाहिये. यथा बृहस्पति होय तौ ब्राह्मणसे या उत्तमधर्मसाधन देवार्चन इत्यादिसे धनका लाभ होता है. जो शुक्र हो तो महिषी आदि वा चांदी या रत्नसे धनका आगम जानिये. शनि होय तो नीचकर्म करनेसे धन मिले । सूर्य होय तो श्रेष्ठ औषधीसे ऊर्णावस्त्रोंसे जीविका होती है । चन्द्रमा होय तो स्त्रीया जलसे या खेतीसे धन मिलता है । मंगल होय तो साहससे या स्वर्णादिधातुसे या शस्त्रसे जीविका होती है, बुध होय तो काव्यरचना या बुद्धिबलसे धन मिलै ॥६-१०॥
दशमभावका स्वामी जिसके नवांशमें बैठा होय उसीके तुल्य कर्मोंसे पंडितजन जीविकाको कहते । मित्रगेहमें या शत्रुगेहमें जो ग्रह स्थित होते हैं वैसाही मित्र या शत्रुसे धनका लाभ कराते हैं. जो सूर्य अपने उच्चमें या स्वस्थानमें या मूलत्रिकोणमें बैठा होय तो अपने बाहुबलसे अर्थकी सिद्धि होती है । जिसके बुध शुक्र बृहस्पति शनैश्चरकरके युक्त राहु केन्द्रस्थानमें स्थित होय तौ वह पुरुष आरोग्यवान् पुत्रवान् आदि सिद्धियुक्त होता है । जिसके दशमस्थानमें अपनी राशिका मंगल शुक्र बुधकरके युक्त हो यदि राहुभी तहां स्थित हो तो उसकी क्षणमें वृद्धि और क्षणहीमें क्षय कहना चाहिये । जिसके पाताल ( अष्टम ) में दशवें बारहवें पापग्रह स्थित होवें तो उसके मातापिताको मारनेवाले और देशसे देश भ्रमण करनेवाले होते हैं ॥११-१५॥
जिसके धनमें सूर्य, कुंभमें शनैश्चर, मेषमें चन्द्रमा और मकरमें शुक्र होय तो वह पिताके धनका नाश करनेवाला होता है । जिसके सातवें सूर्य, दशवें मंगल और बारहवें राहु हो तो उसका पिता कष्टसे जीता है । जिसके राहु कन्या या मिथुनराशिमें प्राप्त होकर केन्द्रमें, छठे, बारहवें अथवा त्रिकोणमें स्थित होय तो वह दाता, भोक्ता और निरामय होता है । जिसके सूर्य पापग्रहकरके युक्त होय अथवा पापग्रहोंके बीचमें स्थित होंय और सूर्यसे सातवें पापग्रह हों तो उसके पिताकी मृत्यु होती है । जिसके दशमस्थानमें मंगल शत्रुक्षेत्रमें स्थित हो उसका पिता शीघ्र ही मरता है ॥१६-२०॥
जिसके लग्नमें बृहस्पति, धनमें शनैश्चर, सूर्य मंगल तथा बुध स्थित हों तो उसके विवाहसमय पिता मरजाता है । जिसके तीसरे बृहस्पति ग्यारहवें चन्द्रमा स्थित होय तो वह अपने घरमें कुलका प्रकाश करनेवाला होता है । जिसके सिंहलग्नमें मंगल पांचवें चन्द्रमा और बारहवें राहु होय तो वह कुलदीपक होता है ॥२१-२३॥
एक पापग्रह लग्नमें और एक पापग्रह आठवें होय तो भी वह कुलदीपक होता है । जिसके लग्न या सातवें मंगल होय, पांचवें चन्द्रमा और बारहवें राहु होय तो वह निश्चय प्रसिद्ध मनुष्य होता है । जिसके केन्द्रमें यदि एकभी शुभग्रह बलवान् विश्वप्रकाशक स्थित होय तो संपूर्ण दोष ( अरिष्ट ) नाश होजाते हैं और वह बडी उमरवाला होता है ॥२४-२६॥