सारावल्या
जिन मनुष्योंके ग्रहोंकी किरणें एकसे पांचपर्यन्त होती हैं वे अधिक दुःखित, नीच, पतित, दुष्टस्वभाववाले, दरिद्री और नीचजनोंसे प्रीति करनेवाले होते हैं । जिनके परतः अर्थात् पांच किरणोंसे अधिक और दश किरणों पर्यत बल होता है वे मनुष्य विदेशगमनमें रत, धनकरके रहित सौभाग्यहीन और मलिन होते हैं । जिनके ग्रहोंकी किरणें दशसे पंद्रहतक होती हैं वे मनुष्य उत्तमपूज्य, धर्मारंभी और अपने कुलके अनुसार सुंदर सुखी होते है ॥१-३॥
जिनके बीसपर्यन्त ग्रहोंकी किरणें होती हैं वे श्रेष्ठकुलवान्, जनरहित कीर्तिको करनेवाले और अपने जनोंकरके संयुक्त होते हैं । जिनके बीसके उपरान्त किरणें पचीस पर्यंन्त होवैं वे मनुष्य पूज्य सुन्दरभेषवाले, बुद्धिमान्, पंडित, चतुर होते हैं । उपरान्त संसारी कार्योंमें निपुण होते हैं । इनके उपरान्त यदि तीसपर्यन्त किरणैं होयँ तो राजाके आश्रयी, राजासे धन सौख्य पानेवाला मन्त्री और पूज्य होता है ॥४-६॥
जिसके इकतीस किरणैं होती हैं वह बहुत प्रसिद्ध, राजा और निष्ठुर होता है । जिसके बत्तीस रेखा होवैं वह पांचसौ ग्रामोंका मालिक होता है । जिसके अधिक अर्थात् तैंतीस ३३ रश्मी होवैं वह हजार ग्रामोंका स्वामी होता है और चौतीस किरणैं होंय तौ तीन हजार ग्रामोंका पालनेवाला जानना । जिसके पैंतीस किरणैं होंय वह मंडल ( देश ) का भोग करनेवाला, बहुत धनकरके युक्त, अतिपराक्रमवाला, प्रसिद्धकीर्ति और यशवाला और मनोहर होता है । जिसके छत्तीस ३६ किरणोंका बल पावैं वह डेडलक्ष ग्रामोंका स्वामी होता है ॥७-१०॥
और जिसके सैंतीस किरणोंका योग होवै वह तीन लाख ग्रामोंका स्वामी होता है । जिसके अडतीस किरणोंका बल पावे वह सात लाख ग्रामोंका स्वामी होता है ॥१२॥
जिसके उन्तालीस किरणोंका बल पावै वह पृथ्वीका स्वामी संपूर्णमनुष्योंका पालन करनेवाला होता है । जिसके चालीस किरणोंका बल पावै वह बडा प्रतापी राजा और अनेक राजाओंको जीतनेवाला, हाथी घोडे सेनपसमेत राज्यभोग करताहै । जिसके इकतालीस किरणोंका बल होय वह सूर्यके समान तेजवाला और समुद्रपर्यत पृथ्वीका राज्य करै और जिसके तैंतालीस किरणोंका बल होय वह चारों समुद्रपर्यंन्त राज्य करता है ॥१३-१५॥
जिसके चवालीस किरणोंका बल होय वह मनुष्य समस्त भूमण्डलका राजा सौम्यस्वभाव, देवता ब्राह्मणकी भक्तियुक्त, बडी उमरवाला और पराक्रमकरके संयुक्त होता है । इनसे अधिक २ किरणोंका बल होय वह द्वीपान्तरोंका पालक सर्वगुणकरके युक्त, सत्त्वस्वभाव, जिसको संपूर्ण जन नमें और इन्द्रके समान प्रतापवाला होता है । जिसके पैंतालीस किरणोंका योग होय वह संपूर्ण राजाओंका स्वामी होता है ॥१६-२८॥
जिसके सैंतालीस किरणोंका योग होय वह घरका भार संभालनेवाला, सर्वत्र शत्रुकरके रहित, इन्द्रके समान, जिसके संपूर्णलोक जन तावेदारीमें हों, नीचकुलमें भी उत्पन्न हुआ हो तौ चक्रवर्ती राजा होता है । जो ग्रह राशिप्रवेशमें अपने गृहादिमें स्थित हो वह पुष्टतर फलको देताहै तथा जो राशिके अंतमें वा अपर शत्रुआदि घरमें हो उसका फल विपरीत जानना । जिसके जन्मसमयमें ग्रह वृद्ध मोक्ष अवस्थामें जो स्थित हों उन ग्रहोंकी रश्मियोंका क्षय होजाता है ॥१९-२१॥