अष्टकवर्गचक्रमें प्रथम सूर्य, शनि, बृहस्पति, शुक्र, मंगल, बुध, चन्द्र तथा लग्न इस क्रमसे स्थापित करै । जो ग्रह जिस राशि स्थित हो वोही राशि उसका अपना स्थानप्रमाण कियाजाता है, फिर उस स्थानको आदि देकर जिस ग्रहका रेखाबिंदु बनाना चाहै, उस ग्रहके चक्रमें क्रमपूर्वक रेखाबिन्दु बारहों भावमें स्थापित करदे और जो स्थान चक्रमें कहे हैं उन स्थानोंको शुभ जानना । उनमें रेखा ( । ) ऐसा चिह्न बनाना, शेषस्थान अशुभ तिनमें बिन्दु ( ० ) ऐसा रखना चाहिये । यथा जन्मकालिक स्थित सलग्न प्रत्येक ग्रहोंके स्थानोसे गोचरकालिक मेषादि प्रत्येकस्थानोंमें रहतेहुए सूर्यका शुभाशुभफल नीचे लिखेहुए चक्रमें स्पष्ट है सो देखना, इसी प्रकार सब ग्रहोंका बनाना ॥१॥
प्रत्येकरेखा या बिन्दुको ढाई २॥ विश्वा जानना, इस प्रकार प्रत्येक ग्रहसे आठ कोष्ठक होते हैं । उनमें रेखाबिन्दु हो तो यथाक्रम विश्वा जानना चाहिये । जैसे रेखा वा बिन्दु हों उनके ढाईगुणा विश्वा होता है । पूर्ण आठ हों तो पूर्ण २० विश्वाका बल होता है, रेखासे शुभ और बिन्दुसे अशुभ जानना । यथा - उपरोक्त चक्रमें सूर्यकी ५ रेखा है तो १२॥ विश्वा बल शुभ है और तीन बिन्दु हैं तौ ७॥ विश्वाबल अशुभ है । सूर्य एक राशिमें तीस ३० दिन रहता है, इससे एक कोष्ठकमें आठवा हिस्सा अर्थात् ३ तीन दिन पैंतालीस ४५ घटी रहैगी । इसी प्रकार चन्द्रमा एक कोष्ठकमें १७ घटी, मंगल ५ दिन सैंतीस ३७ घटी, बुध शुक्र सूर्यके समान जानना, बृहस्पति मास एक दिन अठारह १८ घटी पैंतालीस ४५ और शनि एक कोष्ठकमें मास तीन ३ दिन बाईस २२ रहता है । इसका प्रयोजन यह है कि, ग ह गोचर कालमें राशिके प्रथमादि कोष्ठकोंमें पूर्वोक्त दिनोंके प्रमाणसे रहता है । तहां जिस कोष्ठकमें रेखा हो तौ उस कोष्ठकके दिनोंमें शुभ फल कहना और बिन्दुसे उन दिनोंमें अशुभ फल कहना योग्य है ॥
इति विश्वादिज्ञानम् ॥