जिस नक्षत्रमें शनैश्चर हो उस नक्षत्रसे उलटे चार दाहिने हाथमें, दोनों चरणोंमें छः, चार नक्षत्र वामकर्णमें, पेटमें पांच, मस्तकमें तीन, नयनों वा गुदामें दो दो स्थापित करै तो स्पष्टचक्र होता है । रोग, लाभ, बंधन, पूजा, सौभाग्य, अल्पमृत्यु क्रमसे पूर्वोक्त स्थानोंमें फल विचारना चाहिये अर्थात् दाहिने हाथोंमें पडै तो रोग और चरणोंमें पडे तो लाभ इत्यादि ॥१॥२॥