चलते प्रान कैसे सोइरे काया चलते प्रान कैसे सोईरे ॥ध्रु॥
चलीरे मैं तेरे संग बहुत सुख पाया नच उठ मल धोई ।
अब तुम हसमिल मनन सिधारे जुगमें पडी बगाई ॥च०॥१॥
हसके सुनो बोहारी काया तेरे मेरे संग ना कोई ।
ऐसी भीतको होटक छांडे संग न चला कोई ॥२॥
सेवा सुखदत और परेमदत शीस नाक मुख धोई ।
ऐसी रूखी किती एक छांडी छांडे चली अमर ना हुवा कोई ॥३॥
पाप पुन दोनो जनम संगाती और न चला कोई ।
कहत कबीर सुन भाई साधु ये होनीथी सो होई ॥४॥