राम द्वाही राम द्वाही राम झेंडाके सुमरनसे लागो ।
हरीभक्तसे स्नान झेंडासे सुमरनसे लागो ॥ध्रु०॥
बंका तारे बंका तारे तारे काले कीर ।
सूवा पढावर गनिका तारे ऐसा रघुवीर ॥१॥
पंढरपुरमों नामा वसे काशी वसे कबीर ।
केवलजीको झीक रहो सब धनकी सीर ॥२॥
पंचतत्त्वकी गोधडी धागे भरे अपार ।
चंदसूरज दोनी ठिकरे निरखे निरख नीर ॥३॥
पीपल बांधो पालना तट जमुनाके तीर ।
रामानंदके फौज म्याने झूले दास कबीर ॥४॥