राम भरोंसो राखिये अपने मन भाई ।
सुख सुवे आनंदमें कछु बिगडे नहीं ॥ध्रु०॥
मन ता दन गाडो हता जो दिन गरब बसेरा ।
माया ताकूं या मिली मुरखचेरा सवेरा ॥राम०॥१॥
अगम ताल पाखर कुवा वामे भर रहेते पानी ।
खाली कबुअन निकसी ज्याकी अकल कहानी ॥राम०॥२॥
जलचर जीव जेते तेते पशु पंखी पतंगवा ।
वाकूं हर भोजन देत है सबोके संगा ॥राम०॥३॥
कबीर बैठा नावपर मन तो स्वामी पार ।
खेलन हारा है डुबे जिने सरभार ॥राम०॥४॥