सुनले झटका मायेका डुबाया प्रेमारथ सबका ॥ध्रु०॥
सब तपयामें तपया देखा शंकर बडा हटेला ।
भीलनी उपर ख्याल हुवा जब पडगया नंगा खूला ॥१॥
साठ हजार जप तप किया लव्हापिष्ट चखाया ।
पाव पलमें सबही खोया । विश्वामित्र रोया ॥२॥
विभांडीका वेद झूटा स्त्रीगोवा हुवा जोग कमाया ।
बहुत दिन रह्या बिचारा आखर अकेला गया ॥३॥
इंद्र चंद्रकू और क्या क्या सबकू मालूम हैजी ।
नारदकी तो बनी नारदी ऐसी नवबद बाजी ॥४॥
कहत कबीरा सुन भाई साधू माया सबसे भारी ।
बडे बडेकू दिया झोले साहेबकी गत न्यारी ॥५॥