मनको मार रखो भाई । मनको मारेसे व्यास नारद सब सुख पाई ॥ध्रु०॥
मनसो मुक्ति मनसो फेरा मनसो बिखयका मारा ।
काम क्रोध मद दंभ लोभ ये सब मनका पसारा ॥ मन०॥१॥
मन दोरीका भुजंग मानो पराण नहीं रह पावे मन ।
माने जहां भूतगिरा तब उठा झपटकर खावे ॥ मन०॥२॥
मनके मारे मर जावे जन अमर कोई नहीं देखे ।
साच रखो दिलबात हमारी बचत पकरकर रखे ॥ मन०॥३॥
रूपवती सुकुमार देखके । सुखमाने है माता ।
कहत कबीरा मन राजी हुवा । तो काम खाक जल जाता ॥४॥