हरिसे कोई नहीं बडा । दिवाणे क्यौं गफलतमें पडा ॥ध्रु०॥
प्रल्हाद बेटा हरिसे लपटा । जबी खंब कडकडा ॥१॥
गोपीचंद बचन सुनकर । महाल मुलूख सब छोडा ॥२॥
हनुमाननें सेवा किनी । ले द्रोणगिरी उडा ॥३॥
पुंडलीकने सेवा किनी । विठ्ठल बिटपर खडा ॥४॥
कहत कबीर सुन भाई साधू । हरी चरण चित जडा ॥५॥