मन स्थिर न रहे बाबा न रहे ।
स्थिर रहे तो कहाका डर हैं ॥ध्रु०॥
मनमें राजा पाछा मनमें घोर गंभीर ।
घडी एकमें हत्ती घोडे बैठे घडी एकमें फकीर ॥१॥
घडी एकमें मन पाट पितांबर घडी एकमें चंगी नारी ।
घडी एकमें मोज जोखेकी बाता तो घडी एकमें ब्रह्मचारी ॥२॥
घडी एकमें मन गनके महालों घडी एकमें रहे उदासी ।
घडी एकमें मनोरथ माने तो घडी एकमें निरासी ॥३॥
पोथी पढे पंडित हरि मुसलमान करी रोजा ।
तिरथ फिरे हिंद हारे तो कोई विरले खोजा ॥४॥
ये मानवका बहुत सनेही मन स्थिर न रह जावे ।
कहो भाईये स्थिर कैसे रहे तो कोई पहिरे नाच नचावे ॥५॥
मनकी हरी हारज कोई मनही जिते जित ।
कहे कबीर कुराण पद पाया तो साई मनकी प्रीत ॥६॥