समज बूझ मन खोज दिवाने आशक होकर रोना क्या ॥ध्रु०॥
आया है सो करले सौदा पाया है खोना क्या ॥१॥
जन तुम आया प्रेम गलिनमों सिस देना फिर डरना क्या ॥२॥
रूखा सूखा जमका टूका सोना हो तो सो लेना क्या ॥३॥
जब आंखियनमें निंद भूली आवे तकिया और बिछाना क्या ॥४॥
सतगु पान गलिलन लागा घायल होकर रोना क्या ॥५॥
कहत कबीरा सुन भाई साधु जादू उप्पर टोना क्या ॥६॥