ये कलजुगका फेरा यारो खबरदारीसे पार पडो ।
रखो भक्तिका तेगा हाथमें । तब जमजीको जाके भीडो ॥ध्रु०॥
तप सत बरत दान चार पग धरम रह बनमों जाके ।
तीन पाव तो तुटे दानका आधा हुवा ओ कौन रखे ॥१॥
करम धरमका अम्मल उठा जप तपकी तहागीर भई ।
बाहली हुई नामकी दुहाई जमके मुखपर चढ आयी ॥२॥
दीन दीन आगे बहुत बुरे है न धर्म न रहे डुब जावेगी ।
श्रीकाशी जग उद्धारनीसो गुप्त हुवे समज आवेगी ॥३॥
करम भारसे धरनी कांपे भार उतारो प्रभु मेरा ।
लोक खलक सब सफा हुवेगा रहे भक्तिका कछु दोरा ॥४॥
कहत कबीरा श्रीरामचंद्रके पग सुमरो तुम आन तजो ।
पत्र पुष्प फल जल पत्तेसे करो पूजा तुम राम भजो ॥५॥