वोही राम पछानोजी । मेरा कहना मानोजी ॥ध्रु०॥
परनारीकुं षंढ बना है पर निंदाकु बहिरा ।
परधन देखत अंधा हुवा जब आपका जग सारा ॥१॥
सदा रहत उदासी निंदा स्तुती न जाने कोई ।
ये धेनु ये बाघ न जाने सब सब आत्मा है भाई ॥२॥
भेद नाहीं अभेद हुवा मन राम भया जग सारा ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु जनमों रहकर न्यारा ॥३॥