बेद शास्तरका बडा विचार । कौ पाले ये कलजुगमों ।
औरतसे मूरख भुलगया । ध्यान नही ये ग्यानमों ॥१॥
क्या कहूं साधोजी । माया बजार पुर हैजी ॥ध्रु०॥
छे दरुषनमों ब्रह्मन बडा । बरत नेममों रहता है ।
करम धरम सबही छांड । भंग तमासा सुनता है ॥२॥
लंवडे अगो भडवा खडा । काहा धरम कांहा फल है ।
साधु संतसे मुच्छा मुरडे । देखो मुरगीका गधा है ॥३॥
भजन पुजन कछु नहीं जाने जाने झूटा बजार ।
कहत कबीर सुन भाई साधु । कांहेकु जनम गव्हार ॥४॥