रामनाम मनकी आशा पाऊं । तो काया नगर बसाऊं ॥ध्रु०॥
सोला साई दश दरवाजे । बावन बने कंगोरा ।
तीनसो साठ चिरा बंद । लगा कोट हुआ चौफेरा ॥१॥
पांचपचीस मिलकर सबही । परजा दुखी न हुई ।
चेतन पुरुष करे कोतवाली । नगर बसावे कोई ॥२॥
गडपर राजा राज करत है । निशिदिनीं फिरत दुबाही ।
कामक्रोधकी गर्दन मारी । नवरनमोसे कोई ॥३॥
शून्यमो बस्त बस्तमो शून्य । आगम अगोचर ऐसे ।
शून्य लोकमों बालक खेले । रूप बने है कैसें ॥४॥
ग्यान भंडारा भरा भरपूर । कछु खर्च कछु खाया ।
दास कबीर चढे गडपर । रंजित निशान लगाया ॥५॥