हर हर क्या भूला जग सारा । न माने झूट पसारा ॥ध्रु०॥
काळ भुजंग शरिर बचावे मेंड चबावे मख्खी ।
पल पल उंबर होत है तोटा । विषम न होय न्यारा ॥१॥
दीप देखके पतंग झपावे । धन कामीनसे लपटा ।
जैसी मत्सी गलपर लोटी । प्राण गयासो प्यारा ॥२॥
नवका छोङ नदीमें घूसा । पेट बांधकर फतरा ।
अमृत छांड बिखकु लेवे । हांसे दास कबीरा ॥३॥