संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|गीता|श्री विष्णोर्नाम गीता|
भजन २५

विष्णोर्नाम गीता - भजन २५

आरंभी सूत्रें अनष्टुप श्लोकाचें चरणरूप असून स्तुतिपर आहेत.


॥२५॥ तत्त्व मावर्तनं वंदे ॥
आवर्तनो sसि संसार चक्रमावर्तयन् मुहुः ॥२२८॥
बंध मुक्तो निवृत्तात्मा त्वंमां बंधा द्विमोचय ॥२२९॥
गूढत्वान्मूढ लोकानां संवृतः कीर्तितो सिभोः ॥२३०॥
रुद्रकालादि भिर्विश्वं मर्दयन् संप्रमर्दनः ॥२३१॥
अहः संवर्तको मित्र रूपेणाह प्रवतर्यन् ॥२३२॥
वहनाद्धविषां वन्हि र्गीतः प्रलय रूपवान् ॥२३३॥
प्राणरूपेण चिद्धातु रनिलो जीवयन् प्रजाः ॥२३४॥
धत्ते शेषादि रूपेण धरणीं धरणीधरः ॥२३५॥
भूताग्नि बाहुभि र्वंदे केशवं धरणी धरम् ॥२५॥२३५॥


References : N/A
Last Updated : November 11, 2016

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP