प्रिय रामनामतें जाहि न रामो ।
ताको भलो कठिन कलिकालहुँ आदि - मध्य - परिनामो ॥१॥
सकुचत समुझि नाम - महिमा मद - लोभ - मोह - कोह - कामो ।
राम - नाम - जप - निरत सुजन पर करत छाँह घोर धामो ॥२॥
नाम - प्रभाउ सही जो कहै कोउ सिला सरोरुह जामो ।
जो सुनि सुमिरि भाग - भाजन भइ सुकृतसील भील - भामो ॥३॥
बालमीकि - अजामिलके कछु हुतो न साधन सामो ।
उलटे पलटे नाम - महातम गुंजनि जितो ललामो ॥४॥
रामतें अधिक नाम - करतब , जेहि किये नगर - गत गामो ।
भये बजाइ दाहिने जो जपि तुलसिदाससे बामो ॥५॥
भावार्थः - जिसे श्रीरामजी भी राम - नामकी अपेक्षा अधिक प्यारे नहीं है ( यदि कोई कहे कि तुम्हें राम मिल जायँगे , पर राम - नाम छोड़ना होगा , तो वह इस बातको भी स्वीकार नहीं करता ; वह कहता है कि यदि श्रीरामके मिलनेसे राम - नाम छोड़ना पड़े तो मुझे श्रीरामके मिलनेकी आवश्यकता नहीं है । मुझे तो उनका नाम ही सदा चाहिये । ऐसे नाम - प्रेमीसे राम कितना प्रेम करते हैं , सो तो केवल राम ही जानते हैं , गोसाईंजी कहते हैं कि जो इस प्रकार राम - नामका मतवाला हैं ) उसका इस कराल कलिकालमें , आदि मध्य और अन्त , तीनों ही कालोंमें कल्याण होगा ॥१॥
नामकी महिमा समझकर अभिमान , लोभ , अज्ञान , क्रोध और काम सकुचा जाते हैं , सामने नहीं आते । जो सज्जन सदा राम - नामका जप करते रहते हैं , उनपर कड़ी धूप भी छाया कर देती है ( महान - से - महान दुःख भी सुखरुप बन जाते हैं ) ॥२॥
यदि कोई कहे कि नामके प्रभावसे पत्थरमें कमल उत्पन्न हो गया , तो उसे भी सच ही समझना चाहिये ( क्योंकि राम - नामके प्रभावसे असम्भव भी सम्भव हो जाता हैं ) जिस नामको सुनने और स्मरण करनेसे भीलनी शबरी भी परम भाग्यवती तथा शील और पुण्यमयी बन गयी ( उससे क्या नहीं हो सकता ? ) ॥३॥
वाल्मीकि और अजामिलके पास तो कोई भी साधनकी सामग्री नहीं थी , किन्तु उन्होंने भी उलटे - पुलटे राम - नामके माहात्म्यसे घुँघचियोंसे जवाहरात जीत लिये ( परम रत्न परमात्माको प्राप्त कर लिया ) ॥४॥
नामकी शक्ति श्रीरघुनाथजीसे भी अधिक है , ( क्योंकि श्रीरामजी इस नामसे ही वशमें होते हैं ) इस राम - नामने ग्रामीण मनुष्योंको चतुर नागरिक बना दिया ( असभ्योंका परम पुनीत महात्मा बना दिया ) । जिसे जपकर तुलसीदास - सरीखे बुरे जीव भी डंकेकी चोट अच्छे हो गये ( फिर कहनेको क्या रह गया ? ) ॥५॥