पन करि हौं हठि आजुतें रामद्वार पर्यो हौं ।
' तू मेरो ' यह बिन कहे उठिहौं न जनमभरि , प्रभुकी सौंकरि निर्यो हौं ॥१॥
दै दै धक्का जमभट थके , टारे न टर्यो हौं ।
उदर दुसह साँसति सही बहुबार जनमि जग , नरकनिदरि निकर्यो हौं ॥२॥
हौं मचला लै छाड़िहौं , जेहि लागि अर्यो हौं ।
तुम दयालु , बनिहै दिये , बलि , बिलँब न कीजिये , जात गलानि गर्यो हौं ॥३॥
प्रगट कहत जो सकुचिये , अपराध - भर्यो हौं ।
तौ मनमें अपनाइये , तुलसीहि कृपा करि , कलि बिलोकि हहर्यो हौं ॥४॥
भावार्थः - हे श्रीरामजी ! आजसे मैं सत्याग्रह करनेकी प्रतिज्ञा करके आपके द्वारपर पड़ गया हूँ ; जबतक आप यह न कहेंगे कि ' तू मेरा है ' तबतक मैं यहाँसे जीवनभर नहीं उठूँगा , यह मैं आपकी शपथ खाकर कह चुका हूँ ॥१॥
( यह न समझियेगा कि पुलिसके धक्के खाकर मैं उठ जाऊँगा ) यमदूत मुझे धक्के मार - मारकर थक गये , मुझे जबरदस्ती नरकके द्वारसे हटाना चाहा , पर मैं वहाँसे उनके हटाये हटा ही नहीं ( इतने अधिक पाप किये कि अनेक जीवन नरकमें ही बीते ) । संसारमें बार - बार जन्म लेकर ( माताके ) पेटकी असह्य पीड़ाको सहा , तब कहीं नरकका निरादर कर वहाँसे निकला हूँ ॥२॥
जिस चीजके लिये मचल गया हूँ और अड़ बैठा हूँ उसे लेकर ही छोडूँगा , क्योंकि आप दयालु हैं , ( मेरा अड़ना देखकर अन्तमें ) आपको वह चीज देनी ही पड़ेगी । मैं आपकी बलैया लेता हूँ ( जब देनी ही हैं , तब तुरंत दे डालिये ) देर न कीजिये । क्योंकि मैं ग्लानिके मारे गला जाता हूँ । ( लोग कहेंगे कि ऐसे दयालु स्वामीके द्वारपर धरना दिये इतने दिन बीत गये , इसलिये तुरंत इतना कह दीजिये कि ' तुलसी मेरा है । ' बस , इतना सुनते ही मैं धरना त्याग दूँगा ) ॥३॥
मैं अपराधोंसे भरा हूँ , इस कारणस्से यदि आपको सबके सामने प्रकरे कहते संकोच होता है तो कृपाकर मनमें ही तुलसीको अपना लीजिये क्योंकि मैं कलिको देखकर बहुत घबरा गया हूँ ॥४॥