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शिव स्तुति १०

विनय पत्रिका - शिव स्तुति १०

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


सदा -

शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल - कन्या - वरं, परमरम्यं ।

काम - मद - मोचनं, तामरस - लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं ॥१॥

कंबु - कुंदेंदु - कर्पूर - गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं ।

सिद्ध - सनकादि - योगींद्र - वृंदारका, विष्णु - विधि - वन्द्य चरणारविंदं ॥२॥

ब्रह्म - कुल - वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट - वेषं, विभुं, वेदपारं ।

नौमि करुणाकरं, गरल - गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं ॥३॥

लोकनाथं, शोक - शूल - निर्मूलिनं, शूलिनं मोह - तम - भूरि - भानुं ।

कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन - कलिकाल - कानन - कृशानुं ॥४॥

तज्ञमज्ञान - पाथोधि - घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं ।

प्रचुर - भव - भंजनं, प्रणत - जन - रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं ॥५॥

भावार्थः-- कल्याणकारी, कल्याणके दाता, संतजनोंको आनन्द देनेवाले, हिमाचलकन्या पार्वतीके पति, परम रमणीय, कामदेवके घमण्डको चूर्ण करनेवाले, कमलनेत्र, भक्तिसे प्राप्त होनेवाले महादेवका मैं भजन करता हूँ ॥१॥

जिनका शरीर शंख, कुन्द, चन्द्र और कपूरके समान चिकना, कोमल, शीतल, श्वेत और सुगन्धित है; जो कल्याणरुप, सुन्दर और सच्चिदानन्द कन्द हैं । सिद्ध, सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार, योगिराज, देवता, विष्णु और ब्रह्मा जिनके चरणारविन्दकी वन्दना किया करते हैं ॥२॥

जिनको ब्राह्मणोंका कुल प्रिय है; जो संतोंको सुलभ और दुर्जनोंको दुर्लभ हैं; जिनका वेष बड़ा विकराल है; जो विभु हैं और वेदोंसे अतीत हैं; जो करुणाकी खान हैं; गरलको ( कण्ठमें ) और गंगाको ( मस्तकपर ) धारण करनेवाले हैं; ऐसे निर्मल, निर्गुण और निर्विकार शिवजीको मैं नमस्कार करता हूँ ॥३॥

जो लोकोंके स्वामी, शोक और शूलको निर्मूल करनेवाले; त्रिशूलधारी तथा महान् मोहान्धकारको नाश करनेवाले सूर्य हैं । जो कालके भी काल हैं, कलातीत हैं, अजर हैं, आवागमनरुप संसारको हरनेवाले और कठिन कलिकालरुपी वनको जलानेके लिये अग्नि हैं ॥४॥

यह तुलसीदास उन तत्त्ववेता, अज्ञानरुपी समुद्रके सोखनेके लिये अगस्त्यरुप, सर्वान्तर्यामी, सब प्रकारके सौभाग्यकी जड़, जन्म - मरणरुप अपार संसारका नाश करनेवाले, शरणागत जनोंको सुख देनेवाले, सदा सानुकूल शिवजीकी शरण है ॥५॥

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Last Updated : August 19, 2009

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