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श्रीराम स्तुति ९

विनय पत्रिका - श्रीराम स्तुति ९

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


देव

संत - संतापहर, विश्व - विश्रामकर, राम कामारि, अभिरामकारी ।

शुद्ध बोधायतन, सच्चिदानंदघन, सज्जनानंद - वर्धन, खरारी ॥१॥

शील - समता - भवन , विषमता - मति - शमन, राम, रामारमन, रावनारी ।

खङ्ग, कर चर्मवर, वर्मधर, रुचिर कटि तूण, शर - शक्ति - सारंगधारी ॥२॥

सत्यसंधान, निर्वानप्रद, सर्वहित, सर्वगुण - ज्ञान - विज्ञानशाली ।

सघन - तम - घोर - संसार - भर - शर्वरी नाम दिवसेश खर - किरणमाली ॥३॥

तपन तीच्छन तरुन तीव्र तापघ्न, तपरुप, तनभूप, तमपर, तपस्वी ।

मान - मद - मदन - मत्सर - मनोरथ - मथन, मोह - अंभोधि - मंदर, मनस्वी ॥४॥

वेद - विख्यात, वरदेश, वामन, विरज, विमल, वागीश, वैकुंठस्वामी ।

काम - क्रोधादिमर्दन, विवर्धन, छमा - शांति - विग्रह, विहगराज - गामी ॥५॥

परम पावन, पाप - पुंज - मुंजाटवी - अनल इव निमिष निर्मुलकर्त्ता ।

भुवन - भूषण, दूषणारि - भुवनेश, भूनाथ, श्रुतिमाथ जय भुवनभर्त्ता ॥६॥

अमल, अविचल, अकल, सकल, संतप्त - कलि - विकलता - भंजनानंदरासी ।

उरगनायक - शयन, तरुणपंकज - नयन, छीरसागर - अयन, सर्ववासी ॥७॥

सिद्ध - कवि - कोविदानंद - दायक पदद्वंद्व मंदात्ममनुजैर्दुरापं ।

यत्र संभूत अतिपूत जल सुरसरी दर्शनादेव अपहरति पापं ॥८॥

नित्य निर्मुक्त, संयुक्तगुण, निर्गुणानंद, भगवंत, न्यामक, नियंत ।

विश्व - पोषण - भरण, विश्व - कारण - करण, शरण तुलसीदास त्रास - हंता ॥९॥

भावार्थः-- हे श्रीरामजी ! आप संतोंके सन्ताप हरनेवाले, महाप्रलयके समय सारे विश्वको अपनेमें विश्राम देनेवाले तथा शिवजीको आनन्द देनेवाले हैं । आप शुद्ध - बोध - धाम, सच्चिदानन्दघन, सज्जनोंके आनन्दको बढ़ानेवाले और खर दैत्यके शत्रु हैं ॥१॥

हे श्रीरामजी ! आप शील और समताके स्थान, भेद बुद्धिरुप विषमताके नाशक, लक्ष्मीरमण और रावणके शत्रु हैं । बाण, धनुष और शक्ति धारण किये हैं, आप हाथमें तलवार और सुन्दर ढाल लिये हुए हैं, शरीरपर कवच धारण किये हैं और सुन्दर कमरमें तरकस कसे हैं ॥२॥

आप सत्यसंकल्प, कल्याणके दाता, सबके हितकारी, सर्व दिव्यगुण और ज्ञान, विज्ञानसे पूर्ण हैं । आपका राम - नाम ( अज्ञानरुपी ) अत्यन्त घन अन्धकारसे पूर्ण घोर संसाररुपी रात्रिका नाश करनेके लिये प्रचण्ड किरंणयुक्त सूर्यके समान हैं ॥३॥

आपका तेज बड़ा ही तीक्ष्ण है, संसारके नये - नये तीव्र तापोंका आप नाश करनेवाले हैं, राजाका शरीर होनेपर भी आपका स्वरुप तपोमय है । आप अज्ञानसे परे और तपस्वी हैं । मान, मद, काम, मत्सर, कामना और मोहरुपी समुद्रके मथनेके लिये आप मन्दराचल हैं; आप बड़े विचारशील हैं ॥४॥

वेदोंमें प्रसिद्ध, वर देनेवाले देवताओंके स्वामी, वामन, विरक्त, विमल, वाणीके अधीश्वर और वैकुण्ठके स्वामी हैं । आप काम, क्रोध, लोभ आदिके नाश करनेवाले, क्षमा बढ़ानेवाले, शान्तिरुप और पक्षिराज गरुड़पर चढ़कर जानेवाले हैं ॥५॥

आप परम पवित्र और पापपुंजरुपी मूजके वनको पलभरमें जड़सहित जला देनेवाले अग्निरुप हैं । आप ब्रह्माण्डके भूषण, दूषण दैत्यके शत्रु, जगतके स्वामी, पृथ्वीके पति, वेदके मस्तक और सारे विश्वका भरण - पोषण करनेवाली हैं । आपकी जय हो ॥६॥

आप निर्मल, एकरस, कलारहित, कलासहित और कलियुगके तापसे तपे हुए जीवोंकी व्याकुलताका नाश करनेवाले, आनन्दकी राशि हैं । आप शेषनागपर शयन करते हैं, आपके नेत्र अत्यन्त प्रफुल्लित कमलके समान हैं । आप व्यक्तरुपमे क्षीर - सागरमें निवास करते हैं और अव्यक्तरुपसे सबमें रहते हैं ॥७॥

सिद्धों, कवियों और विद्वानोंको सुख देनेवाले आपके वे चरण - युगल दुष्टात्मा मनुष्योंको बड़े दुर्लभ हैं, जिन पवित्र चरणोंसे परम पवित्र जलवाली गंगाजी निकली हैं, जिनके दर्शनमात्रसे ही पाप दूर हो जाते हैं ॥८॥

आप नित्य हैं; मायासे सर्वथा मुक्त हैं, दिव्य गुण - सम्पन्न हैं, तीनों गुणोंसे रहित हैं, आनन्दस्वरुप हैं, छः प्रकारके ऐश्वर्यसे युक्त भगवान् हैं, नियमोंके कर्त्ता और सबपर शासन करनेवाले हैं । आप समस्त विश्वके पालन - पोषण करनेवाले, जगतके आदि - कारण और शरणागत तुलसीदासका भय हरनेवाले हैं ॥९॥

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Last Updated : August 25, 2009

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