संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|अवन्तीखण्ड|रेवा खण्डम्| अध्याय ८१ रेवा खण्डम् अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ अध्याय १०६ अध्याय १०७ अध्याय १०८ अध्याय १०९ अध्याय ११० रेवा खण्डम् - अध्याय ८१ भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय ८१ Translation - भाषांतर श्रीमार्कण्डेय उवाच -ततो गच्छेन्महाराज वरुणेश्वरमुत्तमम् ।यत्र सिद्धो महादेवो वरुणो नृपसत्तम ॥१॥पिण्याकशाकपर्णैश्च कृच्छ्रचान्द्रायणादिभिः ।आराध्य गिरिजानाथं ततः सिद्धिं परां गतः ॥२॥तत्र तीर्थे तु यः स्नात्वा संतर्प्य पितृदेवताः ।पूजयेच्छङ्करं भक्त्या स याति परमां गतिम् ॥३॥कुण्डिकां वर्धनीं वापि महद्वा जलभाजनम् ।अन्नेन सहितं पार्थ तस्य पुण्यफलं शृणु ॥४॥यत्फलं लभते मर्त्यः सत्रे द्वादशवार्षिके ।तत्फलं समवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥५॥सर्वेषामेव दानानामन्नदानं परं स्मृतम् ।सद्यः प्रीतिकरं तोयमन्नं च नृपसत्तम ॥६॥तत्रतीर्थे मृतानां तु नराणां भावितात्मनाम् ।वरुणस्य पुरे वासो यावदाभूतसंप्लवम् ॥७॥पश्चात्पूर्णे ततः काले मर्त्यलोके प्रजायते ।अन्नदानप्रदो नित्यं जीवेद्वर्षशतं नरः ॥८॥॥ इति श्रीस्कान्दे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां पञ्चम आवन्त्यखण्डे रेवाखण्डे वरुणेश्वरतीर्थमाहात्म्यवर्णनं नामैकाशीतितमोऽध्यायः ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 12, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP